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माली जाति की उत्पत्ति एवं विकास

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 1.  "माली जाति की उत्पत्ति एवं विकास"      मेवाड़ माली समाज के  राव श्री प्रभुलाल (मोबाईल-  +91 97 83 618 184 / What's app-  +91 830 683 2002 मु.पो.- बामनियां कला, तहसील - रेलमगरा, जिला - राजसमन्द, राज्य - राजस्थान, पिन कोड़- 313329)   के अनुसार मेवाड़ माली समाज के आदि पुरुष को "आद माली" के नाम से कहा गया है।      जैसा की पूर्व में उल्लेख किया गया है कि "आद" अथवा "अनाद" शब्द के पर्याय रूप में "मुहार" अथवा "कदम"' शब्द मिलते है जिनका शाब्दिक अर्थ होता है 'पुराना अर्थात प्राचिनतम्। ऱ     "माली सैनी दर्पण" के विद्वान लेखक ने पृ. पर लिखा है कि मुहुर अथवा 'माहुर मालियों की सबसे प्राचीनजाति है। इसका सम्बन्ध मेवाड़ के माली समाज से किस प्रकार है। इस पर अध्ययन अपेक्षित है।      ब्रह्मभट्ट राव के कथानुसार आद माली के 25 पुत्र हुए (किन्तु उनका नामोल्लेख नहीं मिलता है) जिन्होंने कश्मीर में बाग लगाये और लगभग 13वीं शताब्दी में मामा-भाणेज ने सम्भवत: पुष्कर मे अपनी बिरादरी के सदस्यों को चारों दिशाओं से आमंत्रित कर सम

माली समाज की उत्पत्ति

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    2.            "माली समाज की उत्पत्ति"       "माली समाज की उत्पत्ति" के बारे में यूं तो कभी एक राय नहीं निकली फिर भी विभिन्न ग्रंथो अथवा लेखा - जोगा रखने वाले राव, भाट, जग्गा, बडवा, कवी भट्ट, ब्रम्ह भट्ट वकंजर आदि से प्राप्त जानकारी के अनुसार तमाम माली बन्धु भगवान शंकर माँ पार्वती के मानस पुत्र है ! एक कथा के अनुसार दुनिया की उत्पत्ति के समय ही एक बार माँ पार्वती ने भगवान शंकर से एक सुन्दर बाग़ बनाने की हट कर ली तब अनंत चौदस के दिन भगवान शंकर ने अपने शरीर के मेल से पुतला बनाकर उसमे प्राण फूंके ! यही माली समाज का आदि पुरुष मनन्दा कहलाया ! इसी तरह माँ पार्वती ने एक सुन्दर कन्या को रूप प्रदान किया जो आदि कन्या सेजा कहलायी ! तत्पश्चात इन्हें स्वर्ण और रजत से निर्मित औजार कस्सी, कुदाली आदि देकर एक सुन्दर बाग़ के निर्माण का कार्य सोंपा! मनन्दा और सेजा ने दिन रात मेहनत कर निश्चित समय में एक खुबसूरत बाग़ बना दिया जो भगवान शंकर और पार्वती की कल्पना सेभी  बेहतर बना था! भगवान शंकर और पार्वती इस खुबसूरत बाग़ को देख कर बहुत प्रसन्न हुये ! तब भगवान शंकर ने कहा आज से तुम्हे माली के

माली समाज कि उत्पत्ति का इतिहास

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   3.         "माली समाज कि उत्पत्ति का इतिहास"      ” माली ” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द माला से हुई है ,एक पौराणिक कथा के अनुसार माली कि उत्पत्ति भगवान शिव के कान में जमा धुल (कान के मेल ) से हुई थी ,वहीँ एक अन्य कथा के अनुसार एक दिन जब पार्वती जी अपने उद्यान में फूल तोड़ रही थी कि उनके हाथ में एक कांटा चुभने से खून निकल आया , उसी खून से माली कि उत्पत्ति हुई और वहीँ से माली समाज अपने पेशे बागवानी से जुडा ………. माली समाज में एक वर्ग राजपूतों कि उपश्रेणियों का है ……….. विक्रम सम्वत १२४९ (११९२ई ) में जब भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद जब शहाबुद्दीन गौरी और मोहम्मद गौरी शक्तिशाली हो गए और उन्होंने दिल्ली एवं अजमेर पर अपना कब्ज़ा कर लिया तथा अधिकाश राजपूत प्रमुख या तो साम्राज्य की लड़ाई में मारे गए या मुग़ल शासकों द्वारा बंदी बना लिए गए , उन्ही बाकि बचे राजपूतों में कुछ ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया और कुछ राजपूतों ने बागवानी और खेती का पेशा अपनाकर अपने आप को मुगलों से बचाए रखा , और वे राजपूत आगे चलकर माली कहलाये ! अन्य पोस्ट- 1. माली जाति की उत्प

माली जाति उत्पत्ति एंव कृषि

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  4 .         "माली जाति उत्पत्ति एंव कृषि"           माली लोग काश्तकारी यानी खेती करने में ज्यादा होशियार है क्योकिं वे हर तरह का अनाज, साग-पात, फलफूल और पेड़ जो मारवाड़ में होते है, उनको लगाना और तैयार करना जानते है। इसी सबब से इनका दूसरा नाम बागवान है। बागवानी का काम मालियों या मुसलमान बागवानों के सिवाय और कोई नहीं जानता। माली बरखलाफ दूसरे करसों अर्थात् किसानों के अपनी जमीनें हर मौसम में हरीभरी रखते है। उनके खेतों में हमेशा पानी की नहरें बहा करती है और इस लिये ये लोग सजल गॉवों में ज्यादा रहते है। माली लोग अपनी पैदाइश महादेवजी के मैल से बताते है। इनकी मान्यता है कि जब महादेवजी ने अपने रहने के लिये कैलाशवन बनाया तो उसकी हिफाजत के लिये अपने मैल से पुतला बनाकर उस में जान डाल दी और उसका नाम ‘वनमाली’ रखा। फिर उसके दो थोक अर्थात् वनमाली और फूलमाली हो गए। जिन्होनें वन अर्थात् कुदरती जंगलों की हिफाजत की और उनको तरक्की दी, वे वनमाली कहलाये और जिन्होनें अपनी अक्ल और कारीगरी से पड़ी हुई जमीनों में बाग और बगिचे लगाये और उमदा-उमदा फूलफल पैदा किये, उनकी संज्ञा फूलमाली हुई। पीछे से उनमें कुछ